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पाकिस्तान… जब भी हम इस देश का नाम सुनते हैं तो हमारे जहन में सबसे पहले आता है आतंकवाद और वहां की आर्मी और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई. लेकिन अभी कुछ समय में यह देश चर्चा में है अपनी आंतरिक राजनीतिक उथल-पुथल के चलते जो थमने का नाम नहीं ले रही है. बहुत दिनों तक चले इस राजनीतिक विवाद ने अब अपना आखिरी रूप शायद ले लिया है. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री या यूं कहें कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को अब गद्दी से हटा दिया गया है और शहबाज शरीफ अब उनकी जगह लेने जा रहे हैं. अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल देखा जाए तो वहां का कोई भी प्रधानमंत्री या शायद ही कोई प्रधानमंत्री होगा जिसने अपना पूरा 5 साल का कार्यकाल खत्म किया है. जब इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे तो यह आस जगी थी कि शायद इमरान खान अपने 5 साल पूरे कर के ही अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और इमरान खान की सरकार भी गिर गई है. तो ऐसा क्या हुआ कि इमरान खान इतना जल्दी अपनी गद्दी छोड़ कर जाने पर मजबूर हो गए और अंत में जाते-जाते उन्हें भारत याद आया. अपने आखरी प्रधानमंत्री पद के दिनों में उन्होंने भारत की कई बार तारीफ भी की और इसको लेकर पाकिस्तान में उनकी आलोचना भी की गई.
तो आइए इस मुद्दे की गहराई में जाते हैं और जानते हैं कि आखिर पाकिस्तान में क्या रही वजह इस राजनीतिक कल है के पीछे. अगर शुरुआत से बात की जाए तो जिस तरह से साल 2019 में भारत में चुनाव हुए उससे महज 1 साल पहले 2018 में पाकिस्तान में भी जनरल इलेक्शंस हुए थे. भारत की बात की जाए तो भारत में मुख्यतः दो पार्टी कांग्रेस और बीजेपी
ठीक इसी तरह पाकिस्तान के 2018 चुनावों में दो मुख्य पार्टी थी पहली है PMNL ( Pakistan Muslim League Nawaz) जिसे चलाया जाता है नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ के द्वारा और दूसरी पार्टी है PPP( Pakistan people’s party) जिसे चलाया जाता है बिलावल भुट्टो जरदारी के द्वारा लेकिन उस वक्त इन दो पार्टी के अलावा एक तीसरी पार्टी भी मैदान में थी PTI(Pakistan TEHREEK-E-INSAF) और इस पार्टी के नाम का मतलब है movement for justice और इस पार्टी को लीड कर रहे थे इमरान खान.
आप में से ज्यादातर लोग इमरान खान को जानते होंगे जो कि एक फेमस पाकिस्तानी क्रिकेटर थे जिन्होंने 1992 के क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तान को जीत भी दिलाई थी और यह इकलौता विश्वकप है जो पाकिस्तान अभी तक जीत पाया है. अगर 2018 के समय की पाकिस्तानी राजनीति की बात की जाए तो उस वक्त इमरान खान पाकिस्तान की आवाम के लिए एक नई उम्मीद की तरह उभर कर आए थे क्योंकि जो पाकिस्तान की दो मुख्य पार्टी थी जिनके ऊपर हमने चर्चा की है उन दोनों पर ही किसी ना किसी तरह के भ्रष्टाचार या नेपोटिज्म के चार्ज लगे हुए थे. PPP के बिलावल भुट्टो की अगर बात की जाए तो यह बेटे हैं पाकिस्तान कि पूर्व प्रधानमंत्री बेनाज़ीर भुट्टो और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के और अगर इससे भी पीछे हम जाएं तो बेनाज़ीर भुट्टो स्वयं भी पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी थी.
इसी तरह वहां की दूसरी पार्टी PML की इमेज पाकिस्तान में उस वक्त भ्रष्टाचारी पार्टी की थी. नवाज शरीफ को 2017 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के पद से हटाया गया था सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ पाकिस्तान के द्वारा क्योंकि उन पर उस वक्त पनामा पेपर लीक मामले में आरोप लगे थे.
लेकिन इतना ही नहीं इनके ऊपर इससे भी ज्यादा केस पहले से ही चल रहे थे इन्हें जुलाई 2018 मे 10 साल की जेल भी सुनाई गई थी इनके लंदन स्थित फ्लैट्स में करप्शन को लेकर इसके बाद जनवरी 2019 में इन्हें 7 साल की जेल की सजा और 25 मिलियन डॉलर का जुर्माना इन पर लगाया गया क्योंकि नवाज शरीफ यह साबित नहीं कर पाए थे कि सऊदी अरेबिया में एक स्टील मिल कि ओनरशिप इन्हें किस तरह प्राप्त हुई थी.
इस तरह की राजनीतिक अस्थिरता के बीच जब इमरान खान प्रधानमंत्री पद के लिए खड़े हुए और लोगों से वोट मांगा इन्हीं मुद्दों को सामने लाकर कि अगर मैं जीता तो किसी भी तरह का भ्रष्टाचार या नेपोटिज्म देश में नहीं रहेगा. उस वक्त बहुत से लोग पाकिस्तान में इमरान खान को एक आखरी उम्मीद की तरह दिख रहे थे लेकिन दूसरी तरफ कुछ क्रिटिक्स लोग भी थे. इमरान खान की अगर बात की जाए तो यह एक ऑक्सफोर्ड ग्रेजुएट है और इन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट भी खेला है इनके तीन प्रेम विवाह हुए हैं इनमें से इनकी पहली शादी एक ब्रिटिश बिलेनियर की बेटी से हुई थी. अब यह सब जानकर आपको लग रहा होगा कि इमरान खान की सोच कुछ हद तक खुली हुई होगी या यूं कहें कि यह ओपन माइंडेड इंसान होने चाहिए थे लेकिन अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप बिल्कुल गलत है. एक इंटरव्यू में जब इमरान खान से पूछा गया कि क्या यह अहमदी मुसलमानों के राइट्स को सपोर्ट करते हैं तो इस बार इमरान खान ने कहा कि यह अहमदी मुसलमानों को मुसलमान मानते ही नहीं है. यदि आप अहमदी मुसलमानों के बारे में नहीं जानते हैं तो आपको बता दें कि यह मुसलमान तबका वह है जो मिर्जा गुलाम अहमद को मुख्यतः मानते हैं. इसके अलावा इमरान खान ने अपने चुनाव प्रचार में पाकिस्तान के Blasphemy Laws को बहुत अधिक सपोर्ट किया. पाकिस्तान का आर्टिकल 295-C जिसके अनुसार उन लोगों को मौत की सजा दी जानी चाहिए जो कि prophet Muhammad को बदनाम करेंगे. इसके साथ ही इमरान खान ने अपने जीत के लिए Jingoistic Nationalism का भी सहारा लिया जिसका मतलब होता है किसी दूसरे देश से नफरत करके दिखाना जिससे अपने देश में ज्यादा प्यार मिले. कुछ इसी तरह के नारे पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी ने भी सन 2018 में उपयोग किए जैसे ” मोदी का जो यार है गद्दार है “. इमरान खान की पार्टी तक ने यह तक कहा कि वैश्विक समुदाय और भारत मिलकर नवाज शरीफ को चुनाव जिताने का कार्य कर रहे हैं. इन सब के बाद 2018 में पाकिस्तान के चुनाव में इमरान खान की पार्टी नंबर वन पार्टी बनी और इन्हें पाकिस्तान में 155 सीटें मिली. जैसा कि हमने बताया कि करप्शन और नेपोटिज्म के चलते बाकी दोनों पार्टियों को बुरी तरह हार मिली. शहबाज शरीफ की पार्टी को 84 सीटें मिली और तीसरे स्थान पर थी बिलावल भुट्टो जरदारी की पार्टी PPP जिसको की सिर्फ 56 सीटें ही मिल सकी. यह पूरा गणित आपको आज के हालात समझने के लिए बहुत जरूरी है. पाकिस्तान की असेंबली में कुल 342 सीटें हैं और एक तो 72 सीटें बहुमत के लिए चाहिए होती है . यहां पर आप देख सकते हैं कि इमरान खान की पार्टी नंबर वन पार्टी बनने के बाद भी इस 172 के आंकड़े को पार नहीं कर सकी. इसके बाद इमरान खान ने कुछ छोटी पार्टियों और स्वतंत्र नेताओं के साथ मिलकर एक गठबंधन बनाया जिसकी मदद से यह 178 सीटों तक पहुंच गए. ऐसे करने से इनकी सरकार तो बन गई लेकिन यह बहुमत के आंकड़े से कुछ ही दूर जा पाए. जैसा कि आप देख सकते हैं कि बहुमत के आंकड़े से सिर्फ 6 सीटें ही इन्हें अधिक मिली तो इनकी सरकार तो बनी लेकिन यह कोई मजबूत सरकार नहीं कही जा सकती थी
अब आपको बताते हैं वर्तमान के हालात क्या है.
1 महीने पहले 8 मार्च 2022 को विरोधी पार्टी के प्रमुख नेताओं ने पाकिस्तान की संसद में मांग करें कि इमरान खान के खिलाफ एक No Confidence Vote अथवा अविश्वास प्रस्ताव मतदान होना चाहिए. अगर बात करें तो पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान की अधिकतर पार्टी एकजुट हुई है और इन्होंने एक गठबंधन बनाया है PDM ( Pakistan democratic movement ) के नाम से, इस गठबंधन की कोई सख्त विचारधारा नहीं है और इसमें राइट विंग और लेफ्ट विंग सभी तरह की पार्टी शामिल है. अगर इस पीडीएम की बात की जाए तो इसमें बलूचिस्तान नेशनल पार्टी और नेशनल पार्टी जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टियां भी शामिल है तो दूसरी ओर Jamiat Ulema-E-Islam और Jamiat Ahle Hadith जैसी धार्मिक पार्टियां भी शामिल है. और भी कई तरह की पार्टी इसमें शामिल है इस गठबंधन ने आज से लगभग 1.5 साल पहले से अपनी रैलियां या सभाएं करना शुरू कर दिया था. इन्होंने अपनी सभाओं में जनता के मुद्दों को उठाया और पाकिस्तान की आवाम की हक की बात की, और ऐसी बातों पर कानून बनाने के लिए कहा जिन्हें पाकिस्तान के लोग आज तक महसूस करते हैं. नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज ने अपनी रैलियों में लोगों से कहा कि इमरान खान ने लोगों से नौकरियां छीन ली है, लोगों को 2 दिन का खाना भी नहीं मिल पा रहा है इसी तरह बिलावल भुट्टो ने कहा कि ” पाकिस्तान के किसान भूखे हैं ” और ” देश की युवा पीढ़ी इमरान खान से बहुत नाराज है “. इस तरह इन नेताओं ने जब प्रचार किया तो इन रैली में लोगों की बहुत अधिक भीड़ देखने को मिली इन सभी ने मिलजुल कर नौकरियां, पावर कट, महंगाई और पाकिस्तान में बिजनेस बंद होने जैसी समस्याओं को अपना मुद्दा बनाया. अब हम बात करते हैं मार्च 2021 की इस समय पाकिस्तान के वित्त मंत्री अब्दुल हफीज शेख ने पाकिस्तान में सीनेट के लिए चुनाव की घोषणा की.
पाकिस्तान में सीनेट होता है जो कि भारत में राज्यसभा के समानार्थी माना जा सकता है. लेकिन भारत और पाकिस्तान में प्रक्रिया में काफी अंतर है तो इस सीनेट के लिए जब वोटिंग होती है तो यह पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में ही होती है. और इन चुनाव में पाकिस्तान के अब्दुल हफीज शेख जो कि वित्त मंत्री थे वह चुनाव हार गए पर वह भी तब जब खुद इमरान खान ने इनके लिए वोट मांगे थे. और इन्हीं चुनावों में PDM के यूसुफ राजा गिलानी को जीत मिली जो कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं.
यह एक पहला बड़ा झटका था इमरान खान की सरकार के लिए कि उनकी सरकार के वित्त मंत्री ही चुनाव हार गए थे. इसी बात को लेकर विपक्ष ने वहां आवाज उठाई कि इमरान खान को अब अपना इस्तीफा दे देना चाहिए. ऐसा होता देखकर इमरान खान ने एक voluntary vote of confidence किया पाकिस्तान की संसद में, यानी सिंपल शब्दों में अगर आपको बताएं तो इमरान खान ने संसद में कहा कि आप सभी वोट करिए और देखते हैं कि मेरी सरकार अभी भी बनी रह सकती है या गिर जाती है. जैसे भारत में सांसद को members of parliament कहां जाता है वैसे ही पाकिस्तान में इन्हें members of national assembly (MNA) कहा जाता है. यह पाकिस्तान के इतिहास में सिर्फ दूसरी बार था कि किसी प्रधानमंत्री ने नेशनल असेंबली में खुद से vote of no confidence करवाया हो. जब यह वोटिंग हुई तो इमरान खान ने 178 सीटों के साथ फिर से अपना बहुमत साबित कर दिया इससे यह साबित हो गया कि जितने भी MNA’s के साथ इमरान खान ने सरकार बनाई थी वह अभी भी इमरान खान के साथ थे. लेकिन इसके महज एक साल बाद यानी वर्तमान की बात की जाए तो इस बार पाकिस्तान में विपक्ष नहीं है डिमांड करी की vote of no confidence या यूं कहे कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान करवाया जाए. यह मांग इन्होंने 1 मार्च 2022 को करी. इसके बाद 10 मार्च 2022 को इस्लामाबाद की पुलिस ने Parliament Lodges मे रेड मार दी इसमें विपक्षी नेताओं को घसीट कर ले जाया गया और उन्हें पुलिस के द्वारा अरेस्ट कर लिया गया.
इस पूरे मुद्दे को लेकर विपक्ष ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया. पाकिस्तान के एक नेता ने कहा कि सरकार के द्वारा यह चीज करना जरूरी था क्योंकि विपक्षी नेता पार्लियामेंट में भीड़ को अंदर लेकर आ रहे थे, उन्होंने कहा कि JUI-F लगभग 70 लोगों को अंदर लेकर आई थी. इन सबके बीच पाकिस्तान की सेना जिसका एक बहुत बड़ा दबदबा रहता है पाकिस्तान की सरकार में उन्होंने इस सब पर न्यूट्रल रहने का संदेश दिया. इमरान खान इस सेना के बयान से काफी भड़के और उन्होंने यह तक कह दिया कि सिर्फ जानवर ही न्यूट्रल रहते हैं. यह होना पाकिस्तान में इमरान खान के लिए एक झटका भी था क्योंकि ऐसा माना जाता था कि इमरान खान फिर पाकिस्तान में आईएसआई और वहां की सेना के सपोर्ट से ही पावर में रह रहे थे. इसके बाद 18 मार्च 2022 को इमरान खान को एक और झटका लगा जब उनके खुद के पार्टी के सदस्य ही उनके खिलाफ आवाज उठाने लगे. पीटीआई के एक MNA राजा रियाज ने पाकिस्तान न्यूज़ टीवी चैनल जिओ न्यूज़ को बताया कि इमरान खान की पार्टी PTI के लगभग 24 सदस्य तैयार हो गए हैं अपनी पार्टी छोड़ देने को, इसका साफ मतलब था कि उनके सपोर्ट के बिना अब इमरान खान की सरकार गिर जाएगी उन्होंने यह भी बताया कि इनमें से अधिकांश नेता इस वक्त पाकिस्तान के सिंध हाउस में बैठे हुए हैं. राजा रियाज ने कहा कि वे अपने प्रधानमंत्री से बहुत नाराज हैं क्योंकि उनके खुद के इलाके में गैस सप्लाई में कमी हो रही थी जिसके बारे में उन्होंने इमरान खान से बात की परंतु उसके बाद भी इमरान खान ने कुछ नहीं किया. यह सब सुनकर इसके जवाब में इमरान खान ने कहा कि ” यह जो सिंध हाउस है जहां पर यह सब नेता लोग रुके हुए हैं यह हॉर्स ट्रेडिंग का एक सेंटर बन चुका है “| जब यह बात इमरान खान की पार्टी के अन्य वर्कर्स को पता लगी तो वे भीड़ बनाकर सिंध हाउस पहुंचे और इमरान खान के सपोर्ट में वहां जाकर नारे लगाने लगे और वहां बैठे नेताओं से कहा कि आप सब लोग बिक गए हैं और इसके साथ ही यह सभी वहां दीवारें लांग कर अंदर तक घुस गए. अगले दिन 19 मार्च 2022 को इमरान खान ने कहा कि जितने भी विद्रोही नेता हैं इनकी पार्टी के अब उन सभी से इनकी बात हो गई है और वह इनकी पार्टी में वापस आने पर सहमत हो गए हैं. 20 मार्च 2022 को इमरान खान ने विद्रोही नेताओं को वापस अपनी पार्टी में आने के लिए कहा. लेकिन 22 मार्च 2022 को विद्रोही नेताओं ने इमरान खान की पार्टी में वापस आने और माफी प्राप्त करने के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. और ना सिर्फ ठुकराया बल्कि एक विद्रोही नेता डॉ रमेश कुमार ने कहा कि जो विद्रोही नेताओं की संख्या पहले 24 थी अब वह भरकर 35 तक हो गई है. रमेश कुमार ने कहा कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार लगातार बढ़ता जा रहा है. इसके बाद इन विद्रोही नेताओं को इमरान खान की पार्टी के द्वारा Show-Cause Notice जारी कर दिए गए. पाकिस्तानी संविधान के आर्टिकल 63(A) के मुताबिक किसी एक पार्टी के MNA को कोई दूसरी पार्टी ज्वाइन करना इतना आसान नहीं है उस पर काफी तरह की बंदिशें लगाई गई है. लेकिन इसके जवाब में विद्रोही नेताओं ने कहा कि उन्होंने इमरान खान की पार्टी को अभी तक छोड़ा नहीं है और वे अभी भी PTI के ही सदस्य हैं. इस वक्त तक इमरान खान के लिए समस्या यह हो गई थी कि अगर वह इन सभी विद्रोही नेताओं को पार्टी से स्वयं हटा दें या डिसक्वालीफाई भी कर देते तो भी वे बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाते. इसके बाद 23 मार्च 2022 को समस्या और गंभीर हो गई, अभी तक इमरान खान की खुद की पार्टी के नेता विद्रोह पर उतर आए थे लेकिन अब वे पार्टियां जिनके साथ मिलकर इमरान खान ने गठबंधन सरकार बनाई थी वह भी विद्रोह पर आ गई. तीन गठबंधन पार्टियों ने इमरान खान की सरकार का समर्थन नहीं करने की बात कही. इनमें से पहली पार्टी थी पाकिस्तान मुस्लिम लीग दूसरी पार्टी थी Muttahida Quami Movement -Pakistan और तीसरी पार्टी थी बलूचिस्तान आवामी पार्टी और इन तीनों पार्टी की मिलकर 17 सीटें थी. इसके बाद इमरान खान ने अपनी सरकार को बचाने के लिए इन गठबंधन पार्टी को मनाने की कोशिश की.
28 मार्च 2022 को PML-Q पार्टी के लीडर को पाकिस्तान के पंजाब राज्य की मुख्यमंत्री की कुर्सी दे दी गई. इस तरह से एक पार्टी को मनाने में इमरान खान सफल रहे. ऐसे ही दूसरी पार्टी MQM-P को मिनिस्ट्री ऑफ पोर्ट एंड शिपिंग का प्रस्ताव दिया गया लेकिन 30 मार्च को इस पार्टी ने अपने विरोधी दल से एग्रीमेंट कर लिया. इसके जवाब में इमरान खान ने कहा कि वह अपनी सरकार को बचाने के लिए आखरी बॉल तक लड़ेंगे. इसके बाद इमरान खान ने अपनी सरकार को बचाने के लिए झूठ का सहारा लिया और कहा कि कुछ विदेशी ताकतें उनकी सरकार को गिराना चाहती है. इमरान खान ने कहा कि क्योंकि वह हाल ही में रशिया गए थे इसलिए इस बात से अमेरिका खफा है और इसलिए अमेरिका मेरी सरकार गिराने के पीछे की साजिश रच रहा है.
इन सबके बाद 3 अप्रैल 2022 को पाकिस्तान की असेंबली में no confidence vote होना था और इस दिन इमरान खान खुद नेशनल असेंबली से अनुपस्थित रहे. इसके बाद पाकिस्तान के डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने इस राजनैतिक अस्थिरता के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ बताते हुए no confidence voting करवाने के लिए मना कर दिया. इन्होंने इस सब के पीछे पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 5 का हवाला देते हुए कहा कि यहां पर अविश्वास प्रस्ताव गैर कानूनी है क्योंकि यहां पर विदेशी ताकतों का भी हाथ है. और इस बात का अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिल पाया था कि इस सब के पीछे किसी विदेशी ताकत का हाथ है कि नहीं है. इस सब के बाद इमरान खान ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी को सारी असेंबली को भंग करने और चुनाव दोबारा करने की सलाह दी, और उनके राष्ट्रपति ने ऐसा ही किया. अब तक की कहानी सुनकर आपको लग रहा होगा कि अब पाकिस्तान में इमरान खान के लिए एक हैप्पी एंडिंग हो गई होगी और उन्होंने अपनी सरकार को बचा लिया होगा. लेकिन यह सब होता देख कर पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस UMAR ATA BANDIAL ने SUO MOTO cognizance लिया इस घटना का,
जिसका अर्थ होता है कि उन्होंने खुद से इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया. यहां पर पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट की तारीफ की जानी चाहिए क्योंकि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक व्यवस्था की स्वतंत्रता दिखाते हुए 7 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट की 5 जज बेंच ने फैसला दिया कि ‘ पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार ने जो किया है वह असंवैधानिक है और इस तरह से अविश्वास प्रस्ताव को खारिज नहीं किया जा सकता ‘ और साथ ही वहां के सुप्रीम कोर्ट ने जो चुनाव वहां पर करवाए जा रहे थे उन्हें NULL and Void घोषित कर दिया. और साथ ही वहां के सुप्रीम कोर्ट ने विरोधी पार्टियों की मांग यानी अविश्वास प्रस्ताव को सही ठहराया और उसकी अनुमति दे दी. और फिर आता है 9 अप्रैल 2022 जिस दिन हुआ पाकिस्तान में no confidence vote और जैसा कि निश्चित था इमरान खान की सरकार यह अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हार गई. 172 वहां बहुमत का आंकड़ा था और विरोधी पार्टी को वहां 174 वोट मिल गए. इसके साथ ही इमरान खान, no confidence vote के जरिए हटाए जाने वाले पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बन गए. अगर इस मुद्दे पर गहराई से बात की जाए तो किसी भी देश में प्रधानमंत्री को अपने पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव एकमात्र तरीका होता है. और जैसे पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार गिराई गई है इसे अगर देखा जाए तो यह सब वहां के लोगों के लिए अच्छा है. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक स्वतंत्रता का जो उदाहरण प्रस्तुत किया है और जिस तरह से वहां की आर्मी इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं कर रही है और वहां के प्रधानमंत्री को बिल्कुल संवैधानिक तरह से हटा दिया गया है . यह जरूर है कि पाकिस्तान में इमरान खान की कुर्सी उनसे अब छीन गई है लेकिन पाकिस्तान में अगले मतदान या अगले इलेक्शंस ज्यादा दूर नहीं है. इमरान खान चाहते थे कि असेंबली को अभी भंग कर दिया जाए और दोबारा से इलेक्शन करवा दिए जाएं यानी कहीं ना कहीं उन्हें लगता है कि पाकिस्तान की जनता अभी भी उनके साथ है. अगर इमरान खान का ऐसा सोचना सही है तो जल्द ही पाकिस्तान में फिर से चुनाव भी होंगे और अगर पाकिस्तान की आवाम वास्तव में उन्हें पसंद करती है तो अगले चुनाव उन्हें जीत ही जाने चाहिए.
यहां पर हम आपको एक बहुत बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते हैं इंडिया के महान शख्स और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी का जो कि साल 1999 में सिर्फ 1 वोट से अविश्वास प्रस्ताव हार गए थे. सिर्फ 1 वोट से उनकी सरकार गिर गई थी. लेकिन उन्होंने इसके पीछे किसी भी तरह की विदेशी ताकतों या और किसी कारण का हवाला नहीं दिया और बड़ी ही सहजता पूर्ण इसे स्वीकार किया, और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके कुछ महीने बाद जब भारत में चुनाव हुए तो वे फिर से जीतकर पावर में आए. इसलिए हमारा मानना है कि इमरान खान को यह अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए और पाकिस्तान के संविधान को भी कुछ महत्व देना चाहिए.
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