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  • लेखक की तस्वीरIPI NEWS DESK

WHY KEJRIWAL AND ADITYANATH WON? ELECTION 2022 RESULT ANALYSIS / 2022 चुनावों का सबसे सटीक विश्लेषण

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नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब लोग आशा करते हैं कि आप सब लोग स्वस्थ हैं और सुरक्षित हैं. हाल ही में देश का वातावरण आंतरिक राजनीति की वजह से काफी गर्म दिखाई पड़ा, बहुत से बड़े नेता और बड़ी पार्टियों को अपनी सीट गंवानी पड़ी और बहुत से नेताओं को इस चुनाव से पहली बार गद्दी भी हासिल हुई. आज बात करेंगे इसी मुद्दे पर की क्यों योगी आदित्यनाथ और अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने विजय हासिल की और क्यों बाकी अन्य पार्टियां जीत का दामन प्राप्त नहीं कर सकी. ( पढ़ने से पूर्व हम आपको बता दें कि यह हमारे स्वतंत्र विचार है और आप इन्हें अपनी समझ और जिम्मेदारी से पढ़ें, और हम यहां किसी एक पार्टी अथवा एक व्यक्ति के पक्ष अथवा विपक्ष में नहीं है ) आइए शुरू करते हैं और समझते हैं इस मुद्दे को बेहतरी से. इनसाइड प्रेस इंडिया से जुड़ने के लिए आपका पहले बहुत-बहुत आभार हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें ताकि हमारे हर एक आर्टिकल आप तक सबसे पहले पहुंच सके, और हमारे सभी सोशल मीडिया हैंडल पर हमें फॉलो करें.

हाल ही में भारत के 5 राज्यों में चुनाव हुए. उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश, मणिपुर, पंजाब और गोवा भारतीय जनता पार्टी को इनमें से चार राज्यों में जीत मिली जो कि उत्तराखंड उत्तर प्रदेश मणिपुर और गोवा है. और आम आदमी पार्टी को एक पंजाब राज्य में जीत मिली. दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी को हर राज्य में हार का सामना करना पड़ा. तो आखिर ऐसी क्या वजह रही इसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत से और दूसरी तरफ पंजाब में आम आदमी पार्टी भी प्रचंड बहुमत से जीती लेकिन कांग्रेस और अन्य पार्टी अपनी जीत सुनिश्चित नहीं कर सकी.

धार्मिक ध्रुवीकरण ज्यादातर लोग जो भारतीय जनता पार्टी का विरोध करते हैं वह कहते हैं कि धार्मिक ध्रुवीकरण भारतीय जनता पार्टी का एक ऐसा शास्त्र है जिसका प्रयोग वे हमेशा से करते आए हैं. कहा जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के अधिकांश नेता धर्म को लेकर राजनीति कर रहे थे. खुद को एक धर्म का मसीहा बता रहे थे और अन्य सभी पार्टी को एंटी हिंदू घोषित करना चाहते थे. जब हमने इसकी तह में जाना चाहा तो ऐसे काफी सबूत मिलते हैं जिनसे यह साफ होता है कि कहीं ना कहीं भारतीय जनता पार्टी ने इन चुनाव में उत्तर प्रदेश में इस तरह की राजनीति की है. जैसे कि वहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक बयान सामने आया जिसमें उन्होंने समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और उनकी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि एसपी ने बिजली सिर्फ दीपावली और होली पर नहीं दी लेकिन ईद और मुहर्रम पर हमेशा दी (via The Print)

तो आइए एक एक कारण को समझने की कोशिश करते हैं

और कहीं ना कहीं इस तरह के बयानों से लोगों की मानसिकता पर प्रभाव पड़ता है और भी शायद सही प्रकार से किसे वोट करना है इसका चुनाव बेहतरी से या एक कैंडिडेट को ना देख कर सिर्फ अपने धर्म को देखकर करते हैं. लेकिन हमारा सवाल यह है कि अगर इन चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं किया जाता तो क्या वास्तव में भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत पाती?? पर शायद ऐसा नहीं लगता कि अगर भारतीय जनता पार्टी इस तरह की राजनीति नहीं करती तो भी वह हार जाती. क्योंकि शायद धार्मिक ध्रुवीकरण इतना बड़ा कारक नहीं था भारतीय जनता पार्टी की जीत के पीछे इसके अलावा भी अन्य कई कारण रहे.

आप जानते हैं कि आज अगर कोई भी पार्टी किसी भी राज्य में इलेक्शन जीतना चाहती है तो उसके लिए सबसे मुख्य बात होती है एक मजबूत चीफ मिनिस्टर का चेहरा, और भारतीय जनता पार्टी के पास उत्तर प्रदेश में वह चेहरा थे योगी आदित्यनाथ और दूसरी तरफ विपक्ष के पास यह चेहरा था समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव. अब आपको लग रहा होगा कि अखिलेश यादव या समाजवादी पार्टी फिर क्यों यह चुनाव नहीं जीत सके. लेकिन अगर आप चुनाव के आंकड़ों का सही ढंग से विश्लेषण करते तो आप पाते कि यह चुनाव के आंकड़े उतने खराब नहीं है समाजवादी पार्टी के लिए जितने बताए जा रहे हैं.

अगर आप वोट शेयर से देखें तो समाजवादी पार्टी को अपना all-time हाई वोट शेयर मिला है जो कि 32.06% है. और पिछले चुनाव 2017 में यही वोट शेयर समाजवादी पार्टी के लिए सिर्फ 21.82% था. और अगर समाजवादी पार्टी के गठबंधन को साथ मिला लिया जाए तो इन सबका मिलाकर यह वोट शेयर कुल 36% है और भारतीय जनता पार्टी अपने गठबंधन के साथ सिर्फ 7% ही आगे है जो कि 42.15% है

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तो यह जो मुकाबला इन दोनों पार्टी के बीच था वह काफी टक्कर का मुकाबला था. लेकिन समाजवादी पार्टी के पास कहीं अधिक क्षमता थी और मौका था अकेले ही मेजोरिटी वोट हासिल करने का. हमारी नजरों में इस पर यह परेशानी रही कि विपक्ष के चेहरे अखिलेश यादव पिछले 5 सालों में इतने सक्रिय नहीं दिखाई दिए वे चुनावों से सिर्फ 7 या 8 महीने पहले ही जोश में या सक्रियता में दिखाई पड़े. उनकी चुनावी यात्राओं में काफी अधिक भीड़ भी दिखाई दी लेकिन सिर्फ चुनाव से पहले.

पिछले 5 सालों में उत्तर प्रदेश में काफी मामले हुए और काफी आंदोलन भी हुए लेकिन उन सभी आंदोलनों को सिर्फ जनता के द्वारा ही चलाया जा रहा था फिर चाहे वह किसान आंदोलन हो या हाथरस कांड आंदोलन या फिर बेरोजगारी आंदोलन हो अखिलेश यादव ने एक विपक्ष के चेहरे के तौर पर इतना अधिक योगदान नहीं दिया जितना वे दे सकते थे | इन सारे आंदोलन में विपक्ष का जो रोल जनता ने ही निभाया ऐसा लगता है |

पर ऐसा हो सकता है कि अगर अखिलेश यादव इन आंदोलनों का चेहरा बनकर दिखते तो भारतीय जनता पार्टी उन पर यह सवाल जरूर उठाती किसानों पर राजनीति हो रही है या बेरोजगारी पर राजनीति हो रही है लेकिन अगर अखिलेश यादव चाहते तो वे इसका लॉजिकल तरह से जवाब दे सकते थे कि अगर जनता के मुद्दों पर ही राजनीति नहीं करी जाएगी तो फिर राजनीति किस पर की जाएगी |

कुछ जगहों पर विपक्षी दलों के पास सवालों के जवाब नहीं दिखे तो कुछ जगहों पर विपक्षी दल गायब ही नजर आए अगर आगे बात की जाए तो समाजवादी पार्टी की जो इमेज है वह एक विशेष जाति से संबंधित नजर आती है. समाजवादी पार्टी के बारे में कहा जाता है कि सिर्फ यादव और मुस्लिम लोगों से ही इन्हें अधिकांश वोट मिलते हैं (via The Economic Times) और किस बात में काफी अधिक सच्चाई भी है क्योंकि अगर आप एग्जिट पोल के नतीजे देखते तो आप पाते की ज्यादातर वोट शेयर जो समाजवादी पार्टी को मिला है वह इन्हीं दो कम्युनिटी से मिला है.

यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या वास्तव में अखिलेश यादव ने और अधिक जातियों या लोगों तक पहुंचने की कोशिश की उनकी यह जो इमेज बनी हुई है क्या उन्होंने इसे तोड़ने की कोशिश की थी? कुछ कोशिश से उन्होंने जरूर की पर यह कोशिशें मोटे मोटे तौर पर शायद नाकामयाब रही | इस कास्ट वाली इमेज को तोड़ना बहुत जरूरी था अगर समाजवादी पार्टी को अपना वोट शेयर बढ़ाना था. इन सब के बावजूद भी जैसा कि हमने बताया अखिलेश यादव काफी हद तक सफल रहे अपने प्रयासों में उनकी यात्रा में काफी भीड़ दिखाई दी और उनके सपोर्टर्स काफी अधिक जोश में दिखाई दिए | और बहुत से लोग जो बढ़ते पेट्रोल के दामों महंगाई और बेरोजगारी से तंग आ चुके थे उन्होंने भी अपना वोट समाजवादी पार्टी को दिया | 2019 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 50 परसेंट वोट शेयर मिला था उत्तर प्रदेश में और यह वोट शेयर इस बार के चुनाव में 8% कम हो गया | यानी 8% लोग जिन्होंने पिछली बार बीजेपी को वोट दिया उन्होंने इस बार अपना वोट समाजवादी पार्टी या किसी अन्य गठबंधन को दिया |

जनरल इलेक्शंस और स्टेट इलेक्शंस दोनों में अलग अलग मायने तो होते ही हैं उससे तो फर्क पड़ता ही है लेकिन फिर भी यह कुछ ऐसे आंकड़े हैं जो दिखाते हैं कि समाजवादी पार्टी के पक्ष में लोग आ रहे थे बस इतनी संख्या में नहीं आ सका जिससे कि उन्हें जीत मिल पाती.

अगर अन्य कारणों की बात की जाए तो तीसरा कारण कांग्रेस और बीएसपी जैसी पार्टियां थी जो इस चुनाव में लगभग गायब सी दिखाई पड़ी. ज्यादातर लोग जानते थे कि ना ही तो कांग्रेस और ना ही बहुजन समाज पार्टी का कोई चांस था इन चुनाव में जीत हासिल करने का उत्तर प्रदेश में लेकिन अखिलेश यादव का यह काम था इन दोनों पार्टी के सपोर्टर्स को समझाना कि इन दोनों पार्टी के लोगों को वोट देने का कोई फायदा नहीं है आप ही का वोट इससे बर्बाद हो रहा है इस तरह की एक क्लियर संदेश उनकी तरफ से नहीं देखा गया. जैसे कि जब अरविंद केजरीवाल दिल्ली में चुनाव लड़ते हैं तो वे अपने हर भाषण में यह जरूर से बोलते हैं कि कांग्रेस पार्टी को अपना वोट देकर अपना वोट बर्बाद मत कीजिए जब उत्तर प्रदेश में इस तरह से योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव के बीच सीधी लड़ाई थी तो तीसरे पक्ष के लोगों को समझाना और उन्हें अपने पक्ष में लाना एक बहुत जरूरी कारक था अखिलेश यादव के लिए |

फिर भी बहुजन समाज पार्टी को इस चुनाव में 13% वोट मिले और कांग्रेस को 2% और अगर इनका योग किया जाए तो यह कुल मिलाकर 15% वोट शेयर होता है | और अगर अखिलेश यादव ने इन लोगों पर फोकस किया होता और यह 15 परसेंट का लगभग 12 परसेंट भी अपने हिस्से में ले आते तो यह उनकी जीत के लिए काफी होता. पर समाजवादी पार्टी के लिए अच्छी बात यह है कि अगले 5 साल बाद अगले चुनाव में उनके लिए जीतने का एक बहुत अच्छा मौका है. पहले तो 10 साल anti- incumbency देखने को मिलेगी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ और अब 5 साल बाद उत्तर प्रदेश के लोगों को यह भी समझ आएगा कि अगर बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी इसी तरह से असक्रिय रहे तो उन्हें वोट करने का कोई फायदा नहीं है या तो भारतीय जनता पार्टी चुनाव या फिर समाजवादी पार्टी. अगर अखिलेश यादव अगले 5 साल तक धरातल पर कार्य करते हैं और लोगों के साथ उनके आंदोलनों में हिस्सा लेते हैं और अपने चेहरे को सामने रखते हैं तो यह उनके लिए एक मौका बन सकता है.

अब आपको बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में कौन सी चीजें है जिसकी वजह से उन्होंने यह जीत हासिल की

भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में पिछले 5 सालों में बहुत ही अधिक सक्रिय दिखाई दी. या तो बीजेपी के नेता या फिर r.s.s. और संघ परिवार के नेता कहीं ना कहीं हर मुद्दे में दिखाई पड़ते थे.

भारतीय जनता पार्टी के आलोचक हमेशा यह कहते हैं कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा पार्टी के लिए रैली करते रहते हैं लेकिन अगर इसे बारीकी से विश्लेषण किया जाए तो यह एक बहुत बड़ा रोल प्ले करता है भारतीय जनता पार्टी की जीत में. जब नेशनल लेवल का कोई इतना बड़ा नेता किसी पार्टी या खुद की ही पार्टी के लिए बढ़-चढ़कर लोगों के बीच उतरता है तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोगों को उससे एक जुड़ाव महसूस होता है जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा से करते आए हैं |

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा हर जगह दिखाई पड़ता है तो भारतीय जनता पार्टी एक तरह से विजिबल रहती है हर जगह पर और भारतीय जनता पार्टी किसी भी हालात को समझ कर बहुत जल्दी रिएक्ट करती है जैसे कि जब किसान आंदोलन एक बहुत बड़ा रूप लेने वाला था तब बीजेपी ने तुरंत इस पर सक्रिय होते हुए सारे कृषि कानूनों को वापस ले लिया |

साथ ही पीएम किसान योजना के अंतर्गत किसानो को ₹6000 किश्तों में दिए गए और सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही एक रिपोर्ट के आधार पर 2.5 करोड़ किसानों को इसका फायदा मिला. इससे आप यह भी समझ सकते हैं कि एक बहुत बड़ा तबका ऐसा भी है जो भारतीय जनता पार्टी को इसलिए मत देता है क्योंकि उन्हें इनकी सरकार से फायदा हुआ है | जनवरी 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 14 लाख से अधिक परिवारों को पीएम आवास योजना से घर मिला अब अगर इन बात को पूर्ण सच भी नहीं माना जाए तो कम से कम कुछ तो ऐसे लोग हैं जिनको प्रधानमंत्री की इन योजनाओं से काफी अधिक लाभ मिला है और जो भारतीय जनता पार्टी के मजबूत सपोर्टर हैं. अगर और बात की जाए तो दिसंबर 2021 में उत्तर प्रदेश की सरकार ने एक महा अभियान लांच किया मुक्त राशन वितरण के लिए इसमें 15 करोड राशन कार्ड होल्डर्स को डबल राशन बांटा गया था मुक्त में और यह स्कीम बहुत ही सफल हुई. इसी साल जनवरी 2022 में योगी आदित्यनाथ ने बिजली के दाम किसानों के लिए 50% तक घटा दिए. इस तरह से लोगों को लुभाने के लिए इतनी स्कीम लॉन्च करना बीजेपी के पक्ष में काफी अधिक जाता नजर आता है. आम आदमी पार्टी की पंजाब में जीत पर बात करने से पहले एक और कारण देखते हैं जो शायद भारतीय जनता पार्टी की जीत के पीछे एक बहुत बड़ा कारक है. और वह कारण है Lack Of Alternatives या और कोई दूसरा विकल्प नहीं होना कुछ लोग ऐसे भी थे इन राज्यों में जो बीजेपी की गलतियों को मान रहे थे कि यहां पर बेरोजगारी की परेशानी है या महंगाई की परेशानी है या पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं लेकिन फिर भी उन्हें लगता था कि भारतीय जनता पार्टी एक अच्छा विकल्प है बजाय की समाजवादी पार्टी के और इसके पीछे एक काफी कारण हो सकते हैं जैसे समाजवादी पार्टी की एक जातिगत राजनीति करने की इमेज या कुछ यह भी माना जाता है कि समाजवादी पार्टी के वक्त में यूपी में गुंडाराज था या समाजवादी पार्टी के वक्त में काफी अधिक बिजली की परेशानी रहती थी और काफी पावर कट देखने को मिलते थे जो कि आप सुधर गया था बीजेपी की सरकार के बाद.

लेकिन अगर हम मजबूत आंकड़ों की बात करें तो ऐसा कोई मजबूत स्टैटिक नहीं है जो यह साबित करता हो की चीजें वास्तव में ही इतनी अधिक बेहतर हुई थी कुछ आंकड़े सामने आते हैं परंतु अगर आप जीडीपी ग्रोथ या इकोनामिक ग्रोथ को देखेंगे तो यह समाजवादी पार्टी के वक्त बेहतर थी. अगर क्राइम और गुंडाराज की बात की जाए तो यह योगी के आने से काफी सुधरा है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने का कहीं ना कहीं यह अर्थ जरूर है कि लोगों ने बीजेपी पर फिर से विश्वास व्यक्त किया है. चाहे कुछ भी हो या किसी भी बातें की जाए परंतु 5 साल सरकार में रहने के बावजूद अगर योगी आदित्यनाथ को लोगों ने दोबारा चुना है तो इसका अर्थ कहीं ना कहीं यह भी है कि लोगों को योगी आदित्यनाथ और उनके नेतृत्व पर भरोसा है. और साथ ही साथ भारतीय जनता पार्टी पर भी उन्हें भरोसा है. और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे भारतीय जनता पार्टी अपने आगे के 5 साल उत्तर प्रदेश में कार्य करती है और उसे कितना बेहतर करती है.

आइए अब बात करते हैं पंजाब चुनाव पर अगर पंजाब की बात की जाए तो पंजाब में आम आदमी पार्टी को 92 सीटें मिली है जो कि अब तक का सर्वाधिक ज्यादा सीटों का रिकॉर्ड है. परंतु 1997 में अकाली दल को भी 92 सीटें मिली थी इससे पहले. इससे ज्यादा सीटें अभी तक किसी भी अन्य पार्टी को पंजाब में नहीं मिली है. आम आदमी पार्टी के वोट शेयर में इस बार एक जबरदस्त इजाफा देखने को मिला लगभग 42.01 % का इजाफा हुआ. और बाकी अधिकांश पार्टियों का लगभग सफाया होता हुआ नजर आया यहां तक कि अन्य पार्टी के बड़े-बड़े नेता भी चुनाव हारते नजर आए.

पंजाब के ही फॉर्मर सीएम चरणजीत सिंह चन्नी अपनी सीट से चुनाव हार गए. और ऐसे ही पंजाब के दो फॉर्मर सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रकाश सिंह बादल अपनी सीट से चुनाव हार गए. इसके अलावा पंजाब के बड़े नेता जैसे नवजोत सिंह सिद्धू, सुखबीर सिंह बादल, मनप्रीत सिंह बादल और बिक्रम सिंह मजीठिया भी अपनी सीट से चुनाव हार गए. लेकिन बड़े नेताओं का चुनाव हार जाना सिर्फ पंजाब में ही नहीं बाकी और भी कई राज्यों में देखा गया.

पुष्कर सिंह धामी, हरीश सिंह रावत दोनों फॉर्मर चीफ मिनिस्टर अपनी सीट से चुनाव हार गए. केशव प्रसाद मौर्य जो कि उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री थे वे भी अपनी सीट से चुनाव हार गए. इनके अलावा कुछ और बड़े नेता जैसे स्वामी प्रसाद मौर्य, सतीश चंद्र द्विवेदी, सुरेश राणा और अजय कुमार लल्लू भी अपनी सीट से चुनाव हार गए.

अगर पंजाब की बात करें तो ऐसे क्या कारण रहे आम आदमी पार्टी की इतनी बड़ी जीत के पीछे. हमने जो कारण आपको उत्तर प्रदेश के लिए बताए थे उन पर ही अगर आप गौर फरमाएंगे तो आप देखेंगे कि उनमें पहला कारण था धार्मिक ध्रुवीकरण जो कि पंजाब में नहीं देखा गया . दूसरी ओर आम आदमी पार्टी की इमेज किसी भी धर्म या जाति से नहीं जुड़ी हुई है बल्कि आम आदमी पार्टी की इमेज उनके काम से जुड़ी हुई है उन्होंने शिक्षा स्वास्थ्य और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं को जिस तरह से दिल्ली में लोगों तक पहुंचाया है वह काफी देश भर में सराहा गया है.

हालांकि इनकी पार्टी में भी कुछ कमियां देखी जाती है लेकिन यह अपने काम के नाम पर ही अपनी कैंपेन चलाते हैं. हर पार्टी की तरह जितना उन्होंने वादा किया शायद उतना काम नहीं कर सके लेकिन जितना भी कार्य इन्होंने किया वह शायद ग्राउंड पर नजर आता है. जैसे कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों का कायापलट एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि मानी जाती है आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए. आम आदमी पार्टी की सरकार ने जो मोहल्ला क्लीनिक बनाए उन्हें ना सिर्फ देश में बल्कि द विदेशों में भी सराहा गया. इन सब का इस्तेमाल उन्होंने पंजाब में अपने वोट मांगने के दौरान मतदाताओं से किया और आम आदमी पार्टी की इमेज भी अभी तक एक काम पर वोट मांगने वाली पार्टी की है जिसका इन्हें बहुत फायदा मिलता है . अगर और कारण की बात की जाए तो आम आदमी पार्टी के पास इस बार भगवंत मान के रूप में एक मजबूत चेहरा था मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए. जब 2017 में पंजाब में चुनाव हुए थे तब आम आदमी पार्टी ने अपना कोई भी दावेदार मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तुत नहीं किया था. जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के पास एक बड़ा मजबूत चेहरा था अमरिंदर सिंह के रूप में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए.

बात अगर कांग्रेस की की जाए तो कांग्रेस ने इस बार अपने मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी का नाम अनाउंस जरूर किया परंतु वे इसमें काफी लेट भी हुए. दूसरी ओर कांग्रेस में आपस में भी पार्टी में आंतरिक मतभेद चल रहे थे. और राजनीतिक गलियारों में यह बात थी कि चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री फेस बनेंगे या नवजोत सिंह सिद्धू. दूसरी और आम आदमी पार्टी के भगवंत मान पूरे 5 साल तक पंजाब में सक्रिय कार्य करते रहे और लोकसभा में भी इन्होंने अपनी आवाज उठाई और लगातार जनता के बीच रहकर कार्य करते रहे. सबसे बड़ी जीत का कारण शायद यह भी है कि आम आदमी पार्टी अपनी कैंपेन में अपने मकसद को जनता तक पहुंचाने में बहुत सफल रही. उन्होंने चुनावी रैलियों और कैंपेनिंग में एक नारा हमेशा आगे रखा और वह था ” एक मौका केजरीवाल नु ” यानी एक मौका केजरीवाल को भी दिया जाए. इन चुनावों के रिजल्ट के बाद अब आम आदमी पार्टी भारत की चौथी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है भारतीय जनता पार्टी, इंडियन नेशनल कांग्रेस और ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के बाद. हालांकि गोवा और उत्तराखंड में भी आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़े लेकिन वहां पर इनका वोट शेयर सिर्फ 5% के लगभग रहा. यह आम आदमी पार्टी के लिए एक बेस जरूर बना देता है लेकिन और राज्यों में चुनाव जीतने के लिए अभी केजरीवाल को उन लोगों के बीच जाकर उन्हें यह समझाना पड़ेगा कि उनकी सरकार उस राज्य का विकास और उस राज्य के लोगों का विकास कैसे कर सकती है. आम आदमी पार्टी की छवि अभी बिलकुल साफ-सुथरी और एक नई पार्टी के रूप में देखी जाती है जिन्हें किसी भी एक जाति या धर्म से वोट शेयर मिलने की वजह अगर यह पार्टी थोड़ा ध्यान दें तो सब धर्म और जातियों और सब तरह के लोगों से वोट प्राप्त कर सकती है अपने काम के नाम पर या और राज्यों में किए गए विकास के आधार पर.

अगर पूरे चुनाव का आकलन किया जाए तो यह चुनाव एक बहुत ही बड़ा फेलियर रहा है कांग्रेस पार्टी के लिए हर चुनाव के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी देश से लगभग लगभग खत्म होती जा रही है. पिछले चुनाव से इस बार के चुनाव में कांग्रेस पार्टी मणिपुर में 25 सीट के बदले 5 सीट पर आकर रह गई है और मणिपुर की कुछ छोटी पार्टी ऐसी भी हैं जिनका शेयर 1 से लेकर 11 तक बढ़ चुका है. उत्तर प्रदेश में एक समय ऐसा होता था जब कांग्रेस पार्टी अकेले ही चुनाव लड़कर पावर में आती थी लेकिन इस चुनाव में हालत यह हो गई है कि इनका वोट शेयर सिर्फ दो परसेंट पर आकर रह गया है |

जिस तरह से भारतीय राजनीति हर चुनाव के बाद बदलती जा रही है और लोग जैसे जैसे सही का साथ देकर अपने देश को आगे बढ़ाने और देश के भविष्य को आगे बढ़ाने के लिए सोच समझकर वोट दे रहे हैं वैसे वैसे अभी यह राजनीति और बदल जाएगी.

हम इनसाइड प्रेस इंडिया के माध्यम से भारत में और भारत के लोगों के बीच में जागरूकता लाना चाहते हैं कि वोट कभी भी धर्म जाति या पार्टी को देखकर ना दें बल्कि वोट सिर्फ उस व्यक्ति को देख कर दें जिसे आप वोट कर रहे हैं. अगर आपको उस व्यक्ति में इस तरह की क्षमता दिखती है कि वह आपके क्षेत्र या आपके राज्य के लिए कुछ अच्छा कर सकता है तभी आप सोच समझकर उसे वोट दें. राजनीतिक पार्टियों अथवा व्यक्तियों के बहकावे या ललचावे में ना आए और अपने तथा भावी पीढ़ी के भविष्य के लिए सोच समझकर वोट दें. आज के आर्टिकल में इतना ही. आशा करते हैं इनसाइड प्रेस इंडिया का यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा. ऊपर लाइक के बटन को दबाकर हमारे आर्टिकल को लाइक करें और कमेंट करके हमें बताएं कि आपको यह आर्टिकल कैसा लगा और हम कैसे अपने आर्टिकल्स को आपके लिए और बेहतर कर सकते हैं. साथ ही हमारे पेज को सब्सक्राइब करें. हमारे सोशल मीडिया हैंडल्स पर पर हमें फॉलो करना ना भूलें. [Disclaimer :- उक्त आर्टिकल में लिखे गए सारे तथ्य हमारे स्वतंत्र विचार हैं. हम उपरोक्त आर्टिकल के माध्यम से किसी भी जाति धर्म संप्रदाय पार्टी अथवा व्यक्ति के पक्ष अथवा विपक्ष में नहीं है. इनसाइड प्रेस इंडिया सभी धर्म जाति और पार्टियों को समान रूप से मान्यता देती है. हमारे किसी भी word or आर्टिकल को तोड़ मरोड़ कर पेश नहीं किया जाना चाहिए. आप सभी इसे अपनी पूर्ण जिम्मेदारी और समझ से पढ़ें ]

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